कुछ दिनों से बुखार ने बिस्तर पर बांध रखा था
बिटिया की किताब और कलम हाथ लग गई
लिख दी कुछ पाँतिया – उम्मीद करता हूँ आप को पसंद आएगी |
यादों की बारिश
सावन का मौसम था, मौसम मै मस्ती थी,
बारिश की बूंदे और बूँदों मै कश्ती थी…
बारिश की बूंदे और बूँदों मै कश्ती थी|
वो मिट्टी की सौंधी खुसबू , बचपन मैं लेकर जाती थी
गीले कपड़ो मैं घर आना, माँ से छुपते हुए जाना|
माँ तो माँ है,
उसे भनक मिल जाती थी|
वो माँ को आते देख घबराना,
और माँ का अपने आँचल से सर को सुखाना,
दिल मै खुशिया दुगनी कर जाती थी…
वो बारिश की बूंदे और बूँदों मै कश्ती याद आती थी|
आज हम भी है बारिश भी यही…
जाने क्या कमी सताती है,
अब बारिश हमे डराती है |
सुबह है काम, शाम मै जाम,
दिन के थके पथिक को..
जल्दी घर जाने की चिंता सताती है…
वो बारिश की बूंदे और बूँदों मै कश्ती याद आती थी|
भीगना मनो इतिहास हो जैसे, यादो मै ही आती है,
अब बारिश मै भीगने से पहले कपड़ो की चिंता हो जाती है |
जागो नींद से ऐ पथिक, छण भर के लिए त्यागो हर काम,
फिर तैरा दो कस्ती तुम एक, बूंदो की रिमझिम मै खो कर अपना विवेक|
मत करो अपना समय तुम व्यर्थ, हर पल मै जिलों ज़िन्दगी हज़ार
वो बारिश की बूंदो मै एक कस्ती अब तो तुम, तैरा दो यार|
वो बारिश की बूंदे और बूँदों मै कश्ती याद आती थी|